न्रमता के बिना अपने अंदर के तत्वों पाना असंभव : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
मन का दुरूपयोग करता है वह मंदबुद्धि बनता है
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने आज शुक्रवार 16 अगस्त को कोमलता के बिना नम्रता नहीं आती। जब नदी में बाढ़ आती है, तो उसकी अवरोध में आने वाले सभी को बहा ले जाता है, लेकिन कोमल लताए वैसी वैसी रह जाती है। जो झुकता है वह स्थिर वह जाता, झुके बिना हम कभी अपने अंदर के तत्वों को कभी पा नहीं सकते है।
उन्होंने याचना और प्रार्थना के अंतर को समझाते हुए कहा कि याचना वह है जो मुझे चाहिए वह याचना और जो परमात्मा देता है वह मैं स्वीकार करता हूं वह प्रार्थना है। दुनिया में चार चीजें दुर्लभ है एक प्राप्ति- मनुष्य जीवन की प्राप्ति, दूसरी श्रृति – परमात्मा की वाणी का श्रवण, तीसरी रूचि – परमात्मा की वाणी के प्रति श्रद्धा होना और चौथी कृति – परमात्मा के वाणी के मुताबिक जीवन में पुरूषार्थ लाना।
उन्होंने कहा कि मन का दुरूपयोग करता है वह मंदबुद्धि बनता है। कोई व्यक्ति गलत हो सकता है, धर्म कभी गलत नहीं हो सकता। संघ के अध्यक्ष ओमप्रकाश मंडोवरा ने विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि आज 17 को प्रवचन होगा और इसके बाद दोपहर को 3 बजे सांजी और मेहंदी का कार्यक्रम पंडाल में होगा।