धर्म- समाज

गोपीपुरा जैन मंदिरों की तीर्थभूमि: जानें श्री सूरजमंडन पार्श्वनाथ जैन देरासर के बारे में यह खास बात

पूरे भारत में श्री सूरजमंडन पार्श्वनाथ जैन देरासर प्राचीनता और प्रभाव के दस्तावेज के रूप में प्रसिद्ध

सूरत। गोपीपुरा जैन मंदिरों का तीर्थ स्थल है। श्री सूरजमंडन पार्श्वनाथ जैन देरासर पूरे भारत में पुरातनता और प्रभाव के दस्तावेज के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर सुभाष चौक की हाथी गली में स्थित है। सुरक्षा की दृष्टि से देंखे तो इस मंदिर को 400 साल पहले बनाया गया था। यह बिना शिखर का मंदिर था। समय और संयोग को ध्यान में रखते हुए इ. स.1987 में नींव से उतारकर एक नया घुम्मटवाला शिखरबंधी मंदिर बनाया गया था।

इस जिनालय के जीर्णोद्धार आशीर्वाददाता और जिनालय के आमूल जीर्णोद्धारक जीनशासन प. पू. आचार्य चंद्रोदय सुरीश्रवरजी म. सा., सुरीमंत्र समाराधक प. पू. आचार्य अशोक चंद्रसूरीश्वरजी म. सा और व्याकरणाचार्य प .पू. आचार्य सोमचंद्रसुरीश्रवरजी म. सा हाथ से किया था। अंदर प्रवेश करते ही जिनालय में प्राचीन शैली दिल को आकर्षित कर लेती है। रंग मंडप की नक्काशी वास्तुकला की उत्कृष्टता का प्रमाण है। इस भव्य मंदिर में पवित्र ऊर्जा का अनुभव होता है।

परमात्मा का चेहरा देखकर मन की सारी गर्मी और पीड़ा दूर हो जाती है। सूरतमंडन पार्श्वनाथ श्वेतवर्णी नवफणार्थी शोभती पद्यासनवाली दिव्य प्रतिमा आज से 400 साल पहले वि. स. 1678 के दिन पू . उपाध्याय रत्नचंद्र गनी के हाथों प्रतिष्ठा हुई थी। गोपीनाथ नाम के श्रेष्ठ ने इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा का लाभ उठाया। इसी नाम से गोपीपुरा की पहचान हुई। इतिहास कहता है कि ऐसे मंदिर का घुम्मट पूरे भारत में कहीं नहीं मिलता। आज इस देरासर सूरत मंडण पार्श्वनाथ के बराबर पीछे के हिस्से प्राचीन वेलू के प्रतिमा का आलंबन लेकर पूज्य शासक प्रभावक अकबर बादशाह के प्रतिबोधक आचार्य हिरसूरीश्वरजी महाराज ने सत्त्वपूर्ण साधना की।

आज 400वीं वर्षगांठ मनाने का जैन समुदाय को लाभ हुआ है। इस अनूठे अवसर पर पद्म भूषण विभूति, राजप्रतिबोधक, पू.आचार्य श्री रत्न सुंदरसुरिजी म., आचार्य पद्मसुंदरसुरिजी म., आचार्य युगसुंदरसुरिजी म., पू. पन्यासप्रवर पद्मदर्शन विजयजी म. आदि श्रमण-श्रमणी भगवंतो के पावन निश्रा में पंचाहिनाका महामहोत्सव के रूप में भक्ति का वातावरण बनेगा। यह पूरे भारत में 5000 वर्ग फुट का सबसे बड़ा रंगमंडप है और 1000 साल प्राचीन परमात्मा की भव्य और नयन रम्य प्रतिमा है। इस मंदिर में 20,000 वर्ग फुट के संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर का निर्माण पूरे भारत से चुने गए 100 कारीगरों द्वारा किया गया है। विभिन्न कलाकृतियों को 14 परतों में प्रदर्शित किया जाता है।

11 फरवरी को महोत्सव का प्रारंभ हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल हुए। 12 को रत्नसागर स्कूल में पू सरस्वती लब्धप्रसाद आचार्य रत्नसुंदरसूरिजी का प्रवचन और दादा की 400 सालगिरह की ध्वजा चढ़ावा बुलाया जाएगा। उसी दिन दोपहर 12.39 बजे साहेब की उपस्थिति में शक्रस्तव अभिषेक होगा।14 फरवरी को सुबह 8:00 बजे दादा का अभिषेक, 11:00 बजे गुरुदेव के साथ धजा का स्वागत यात्रा और दोपहर 12: 39 बजे सूरजमंदन दादा का ध्वजारोहण का प्रसंग मनाया जाएगा।

15 फरवरी को सुबह 8:00 बजे सत्तरभेदी पूजा और दोपहर 12:45 बजे धर्मनाथ दादा का ध्वजारोहण होगा। पांच दिन विशे@ट संगीतकारों द्वारा प्रभुभक्ति का अपूर्व माहौल होगा। श्रद्धालुओं को हाथीवाला देहासर के ट्रस्टीगण की ओर से कार्यक्रम में दर्शन का लाभ लेने की अपील की गई है।

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