सूरत

उमरपाड़ा तालुका के नसरापुर गांव के किसान की हल्दी की सफल खेती: हल्दी के मूल्यवर्धन से लाखों की कमाई

स्नातक तक पढ़ाई: नौकरी के बजाय खेती में रुचि लेकर खेती और पशुपालन से बने समृद्ध

सूरत : उमरपाड़ा तालुका के नसरापुर गांव के किसान मनजीभाई चौधरी ने अपने पिता की पारंपरिक खेती को अपनाकर हल्दी की खेती में बड़ी सफलता प्राप्त की है। स्नातक तक शिक्षा प्राप्त करने वाले मनजीभाई ने नौकरी के बजाय खेती में रुचि लेकर खेती और पशुपालन से आत्मनिर्भरता हासिल की है। उन्होंने हल्दी की खेती और उसके मूल्यवर्धन के जरिए न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि अपनी तीनों बेटियों को बी.एड. और बी.एससी. तक की उच्च शिक्षा भी दिला रहे हैं।

53 वर्षीय किसान मनजीभाई चौधरी ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही अपने पिता की पारंपरिक खेती को नजदीक से देखा और सीखा है। खेती करते-करते उनकी रुचि प्रगतिशील और मूल्यवर्धित खेती की ओर बढ़ी। समय के साथ बदलाव लाते हुए उन्होंने अपने कृषि उत्पादों का मूल्यवर्धन शुरू किया। उन्होंने पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियाँ जैसे कि जैविक खेती, टपक सिंचाई, जल संरक्षण (वॉटर हार्वेस्टिंग) और मल्चिंग जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाकर खेती में उत्कृष्ट परिणाम पाए। रासायनिक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती से उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और बाजार में बेहतर दाम भी मिलते हैं। उनके उत्पाद तुरंत बिक जाते हैं।

मनजीभाई ने बताया कि पहले जब वे रासायनिक विधियों से मूंगफली की खेती करते थे तो उत्पादन कम और खर्च अधिक होता था। लेकिन जब से उन्होंने जीवामृत, घनजीवामृत जैसे जैविक तरीकों का इस्तेमाल शुरू किया, उत्पादन में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। पिछले 5-6 वर्षों से वे हल्दी की खेती कर रहे हैं। पिछले वर्ष उन्होंने 50 मण हल्दी का उत्पादन किया जिससे उन्हें ढाई लाख रुपये की आमदनी हुई। पहले हल्दी का भाव 100 से 150 रुपये प्रति किलो था, परंतु जैविक खेती शुरू करने के बाद अब यह 300 से 350 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गया है। सरकार के सहयोग से वे विभिन्न प्रशिक्षण केंद्रों पर प्रेरणा यात्राओं में भी भाग लेते हैं, जहाँ से उन्हें नई-नई तकनीकों का ज्ञान प्राप्त होता है जिसे वे अपनी खेती में लागू करते हैं।

उन्होंने बताया कि हर महीने सरकार की ओर से देशी गायों के भरण-पोषण के लिए अनुदान मिलता है जिससे पशुपालन में भी आर्थिक सहायता मिलती है। खेत में अतिरिक्त जगह पर उन्होंने सरगवा (सहजन) और तोतापुरी, राजापुरी व केसर प्रजाति के 20-25 आम के पेड़ लगाए हैं। बिना किसी अतिरिक्त लागत के सरगवा तैयार हो जाता है और अच्छा उत्पादन भी देता है। प्राकृतिक खेती शुरू करने के बाद उन्होंने खेत में कभी भी रसायन या रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया है। आम की अच्छी कीमत मिलने से उन्हें बाजार तक जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही वे खेत में चीकू, जामरुख, केले और गन्ने की भी खेती करते हैं जिससे सीजनल आय भी होती है।

हल्दी को मिला GI टैग इसकी गुणवत्ता और कृषि मूल्य को मान्यता देता है। भारत सरकार द्वारा हल्दी और इसके उत्पादों के विकास व मार्केटिंग के लिए राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड की स्थापना की गई है, जो हल्दी के निर्यात में मददगार सिद्ध होगी। इस पर खुशी जाहिर करते हुए मनजीभाई ने अन्य किसान साथियों से अपील की कि वे भी थोड़ी-सी जमीन में जैविक खेती की शुरुआत करें और ज़हरमुक्त शुद्ध खेती को अपनाएं। उन्होंने कहा कि रासायनिक खादों को त्यागकर प्राकृतिक खेती की ओर लौटना ही एकमात्र विकल्प है।

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