धन तेरस पर्व मनोवैज्ञानिक रूप से समाज का दर्पण होता है
पर्व उस समाज की सभ्यता ,संस्कृति, रुचि और इतिहास का प्रतीक होता है। पर्वो के पीछे समाज के आदर्श कही प्रतीक कल्पना के रूप में और कही इतिहास के घटनाक्रम के रूप में जुड़े रहते है।कृष्ण पक्ष की तेरस बड़ी शुभ और लाभकारी मानी जाती है।पता नही इसे धन तेरस नाम देने के पीछे क्या कल्पना रही होगी।भारत मे कार्तिक कृष्णा तेरस को लक्ष्मी पूजन होता है और घर के द्वार पर यम का एक दिया जलता है।
गृहस्थ चतुर व भाग्यशाली माना जाता है जो अपने लाभ अर्थात आय को देखकर खर्च करता है। वह कभी पछताता नही है,कही लज्जित नही होता।आय व्यय का हिसाब सामने आने से मितव्ययता भी आती है। जैसे भंवरा फूलो से रस लेता है,किंतु फूलो को कोई तकलीफ नही होने देता। फूलो की रक्षा करता हुआ उनसे रस ग्रहण करता है।व्यापारी को भी यही नीति अपनानी चाहिए। जिन श्रमिको से ,जिन कारीगरों से,जिन सहयोगियों व जिन ग्राहकों से आप धन कमा रहे है,भले कमाए।परन्तु भँवरों की तरह उनका भी ध्यान रखकर। कही आप के रसास्वाद में यह नही हो कि सारा रसास्वाद आप ही चूस ले।आपके ग्राहक,सहयोगी या दूध देने वाली गाय की हड्डी पसली निकल आये। बुद्धिमानो का व्यवहार भँवरों की तरह होता है। जो थोड़ा थोड़ा लेकर किसी को कस्ट नही पहुंचाते है। व्यापार की कुशल नीति भी यही है। किंतु आज व्यापारी ,उधोगपति पोषण की नीति भूल गया है ,केवल शोषण करने लगा है। दुसरो को जिलाकर जियेंगे ,दुसरो को खिलाकर खाएंगे तो आपकी व्यापार नीति सदा फलती फूलती रहेगी।
धन उसका है जो,उपयोग करता है। जिसने धन से यश कमाया,सुख प्राप्त किया,वह भाग्यवान है। धन से मुंह मोड़कर खड़े हो जाओ ,धन आपके पास आयेगा। धन तेरस के दिन आयुर्वेद के प्रवर्तक धनवंतरी का प्रादुर्भाव होने की पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है।इसलिए आज आयुर्वेद जगत में स्थान स्थान पर धनवन्तरी जयंती भी मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार देव दानवों ने सुमेरु पर्वत की मन्थान और शेषनाग की रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन किया तो उससे चौदह रत्न प्रगट हुए । धनवन्तरी हाथ मे अमृत कलश लिए समुद्र में प्रगट हुए। जिस जिस स्थान पर वह अमृत कलश रखा गया या उसका अमृत गिरा उस स्थान पर आज भी कुंभ का मेला लगता है।
धनवन्तरी एक प्रतीक है। मनुष्य अपने संसार के लिए शुभ भवनों का अमृत कलश लेकर इस धरती पर अवतरित हुआ है। दुसरो के लिए सदिच्छा और मंगल कामना रूप अमृत बांटे। जीवन मे सदा ही शुभ कर्म करे।यही अमृत बांटना है। मनुष्य के भीतर मानवीय गुण है।,वे ही वास्तव में अमृत है। अमृत का स्वभाव है मधुरता तथा रोगनाशक शक्ति। अमृत एक प्रकार का मधुर रस है,जीवनदायी पेय है। जो पिता है उसे इतनी तृप्ति अनुभव होती है कि उसकी भूख प्यास तो मिटती ही है,शरीर के रोग भी शांत हो जाते है। मानव जीवन मे मैत्री,,प्रेम,क्षमा, भक्ति,करुणा,वात्सल्य आदि गुणों को अमृततुल्य माना गया है।इन गुणों के कारण मनुष्य की अनेक क्रूर वृतिया ,भोग तृष्णा आदि शांत हो जाती है। उसके जीवन मे बाहरी वस्तु कुछ नही मिले तब भो परम् तृप्ती और परम स्वस्थता बनी रहती है। ऐसा गुणी व्यक्ति संसार मे जीवित रहे तो सुखी और यशोभागी होता है,मरकर भी वह अपने गुणों के कारण अमर हो जाता है।
राम,कृष्ण,महावीर,गौतम बुद्ध,तुलसी ,मीरा,गांधी,मदर टेरेसा आदि अनेक विभूति जन जन की वाणी पर बसे है। वे मरकर भी अमर है इन्ही गुणों के कारण धनवन्तरी जयंती के दिन आज सद गुणों का अमृत पान करने और दूसरों में भी इन गुणों का अमृत बांटने की प्रेरणा लेनी है। इस प्रकार धन तेरस के दो प्रतीक अर्थ आपके लिए प्रेरणा के दीपक जला रहे है।पहला धन कमाने में सदा नीति और प्रमाणिकता बरतो और दूसरा सद्गुणों का अमृत पीओ और दूसरों को भी पिलाओ। लोग आज के दिन तांबे,चांदी की खरीदी करते है वो ठीक हैं। लेकिन असली धन तेरस दुखियों के दुखदर्द दूर करने का संकल्प लेना है।दुसरो की सेवा करते आपका जीवन रस कृतार्थ हो जाये तो समझो आज धन तेरस हो गई। यदि आज के दिन आपने एक भी दुःखी प्राणी का दुखदर्द मिटा दिया। किसी अस्पताल में जाकर रोगियों की सार संभाल ले ली,उन्हें सांत्वना दी और उनको कुछ शांति पहुंचाई तो समझ लो आपकी धन तेरस वास्तव में धन्य तेरस हो गई। जो परोपकार करेगा लक्ष्मी स्वयं उसके द्वार पर आकर दस्तक देगी।
( कांतिलाल मांडोत )