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मुंबई भाजपा में बढ़ती भीड़ के बावजूद मुकाम से कोसों दूर उत्तर भारतीय नेता

मुंबई। मुंबई महानगरपालिका चुनाव के बारे में कहा जाता रहा है कि उत्तर भारतीय मतदाताओं का जिस पार्टी के सिर पर हाथ रहता है, उसी पार्टी के सर्वाधिक नगरसेवक चुनकर आते हैं। लंबे अरसे तक कांग्रेस के साथ रहे उत्तर भारतीय मतदाता उत्तर भारत में बढ़ते प्रभाव के साथ बीजेपी से जुड़ते गए। ऐसे में बीजेपी के साथ बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय नेता जुड़ते गए।

मुंबई भाजपा की बात करें तो यहां अन्य पार्टियों की तुलना में 8 से 10 गुना नेता नजर आएंगे। यह अलग बात है कि उन्हें ज्यादातर छोटी-छोटी पोस्ट का घुनघुना थमा दिया गया है। प्रभावशाली और असरदार पोस्ट से कोसों दूर उत्तर भारतीय नेता सिर्फ पपेट की शक्ल में अभिनय करते नजर आ रहे हैं। कहने के लिए कुछ बड़े पपेट हैं तो कुछ छोटे। बड़े इसी बात पर खुश हैं कि छोटे उनको सलाम कर रहे हैं। सच्चाई कुछ हटकर है।

एक भी उत्तर भारतीयों नेता को ऐसी पोस्ट नहीं दी गई है कि वह एक भी नगरसेवक का नाम तय कर सके। स्थिति यह है कि वह अपने लिए भी टिकट नहीं ले सकता। राम यादव जैसे कुछ युवा और उत्साही भाजपाई इस हकीकत को समझ चुके हैं। शिंदे गुट शिवसेना में जाते ही उन्हें उप विभाग प्रमुख का पद दे दिया गया।

इससे साफ होता है कि अन्य पार्टियों में उत्तर भारतीय चेहरों के लिए सम्मानजनक जगह है। सभी प्रमुख उत्तर भारतीय नेताओं के गॉडफादर गैर उत्तर भारतीय नेता ही हैं। एक भी उत्तर भारतीय चेहरा ऐसा नहीं है, जिसे गॉडफादर बनाकर कोई मुकाम हासिल कर सके।

सूत्रों की माने तो मुंबई भाजपा में भीड़ तंत्र का हिस्सा बने उत्तर भारतीय नेताओं को महत्वपूर्ण बैठकों तक में बुलाया नहीं जाता । बड़ी और निर्णायक संख्या में होने के बावजूद उत्तर भारतीय नेताओं की हालत दयनीय है। शाबाशी देनी होगी अबू आजमी जैसे नेताओं को, जो एक छोटी पार्टी का नेता होने के बावजूद अपनी स्वतंत्र आवाज और स्वतंत्र विचार से अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं।

मुंबई में लाखों की संख्या में रह रहे उत्तर भारतीय मतदाताओं का रहनुमा, उनकी आवाज , उनकी ताकत, उनकी पहचान, उनका स्वाभिमान कब और कौन बनेगा?

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