
श्री गौरांग प्रभु जी की बाल लीलाओं का वर्णन सुन मंत्रमुग्ध हुए भक्त
सूरत। श्री रामकृष्ण सेवा समिति के तत्वधान में वनिता फॉर्म वीआईपी रोड पर चल रही गौरांग कथा में वृंदावन से पधारे परम श्रद्धेय श्री गौरदास जी महाराज ने आज कथा के दूसरे दिन श्री गौरांग प्रभु जी की बाल लीलाओं का बहुत सुंदर वर्णन करते हुए बताया कि एक बार गौरांग प्रभु जब उनकी उम्र 15 साल की थी तब वह लगातार बहुत रोए ही जा रहे थे। तभी उनकी मैया के मुंह से निकला की है हरी यह कैसे चुप होगा। तभी गौरांग प्रभु एकदम से चुप हो गए अब तो जब भी मां प्रभु जी को कीर्तन सुन रहा होता था तो वह रोने लग जाते तो घर के सारे लोग कीर्तन करने में लग जाते थे। बचपन से ही मां प्रभु जी ने अपने घर से ही कीर्तन करना शुरू कर दिया। 6 महीने बाद महाप्रभुजी का अन्नप्राशन संस्कार करवाया गया जिसमें बालक को पहली बार उनकी वस्तु खिलाई जाती है। उस दिन सभी 6 रसों का स्वाद बच्चे को चखाया जाता है। गौरांग प्रभु ने खट्टा मीठा कड़वा क्षार सभी दानों को एक भाव से ही ग्रहण किया। अर्थात जैसे मीठा खाया वैसे ही कड़वा भी उसी स्वाद से खाया।
महाराज श्री ने कथा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि हम हिंदुओं के कुल 16 संस्कार होते हैं। हमें उन सभी संस्कारों को बच्चों के सामने करने चाहिए तभी अपने बच्चे बड़े होकर यह सब संस्कार कर पाएंगे। महाराज श्री ने एक प्रसंग में बताया कि जो व्यक्ति वैष्णव जनों को या संतो को या फिर अपने से बड़े लोगों को झूठा खिलाते हैं या अपने से बड़ों का सम्मान नहीं करते हैं उनको अगले जन्म में कुत्ते की योनि मिलती है। एक बार श्री गौरांग प्रभु बच्चों के सात गंगा किनारे हरि हरि बोल का खेल खेल रहे थे तो दो चोर वहां आए और उन चोरों ने महाप्रभु जी को अपनी गोद में उठा लिया और मन में सोचा कि अगर हम इन के गहने उतार लेंगे तो मालामाल हो जाएंगे। लेकिन गौरांग प्रभु के प्रभाव से वह चोर अपनी चोरी को भूल कर उनके साथ कीर्तन करने लगे और भक्त बन गए महाराज जी के द्वारा गाए हुए भजन हमारे गौर हरि जी प्यारे-प्यारे …………