धर्म- समाज

आर्थिक समृद्धि और मनोकामना की पूर्ति का अमोद शस्त्र शारदीय नवरात्र की दुर्गा पूजा

अश्विनी प्रतिपदा से नवमी तक भारत में ही नही पूरे विश्व मे शक्ति की उपासना की जा रही है।आज प्रतिपदा से नवरात्रि का शुभारंभ हो रहा है। लक्ष्मी ,सरस्वती सावित्री और राधा के साथ प्रथम नाम दुर्गा का ही है। यह शिव स्वरूपा है। और शिव की प्रेयसी भार्या है। साथ ही साथ नारायणी विष्णु माया और पूर्णस्वरूपिणि नाम से प्रसिद्ध है। सभी की उपासना और व्यवस्था करने वाली है।

राम ने भी युद्ध के पहले शक्ति की आराधना की थी। शक्ति के बिना शव बन जाते है। दुर्गा शक्ति और विजय का प्रतिरूप है। ये शक्तियां मनुष्य के गतिशीलता का धोतक है।भारत की प्राचीनतम सिधु सभ्यता और मिस्र की सभ्यता के समय के समय से ही मातृदेवियों की आराधना लोकप्रिय है।ये देवताओं की शक्तियां है। जिन्हें संप्रदाय के अंतर्गत गुप्तकाल तथा उसके पश्चात स्वतंत्र उपयोगिता प्राप्त हुई।असुरों का विनाश कर देवी ने देवताओं तक को भयमुक्त कर दिया था। यह कल्याण की ताकत थी। लेकिन दैत्यरूप में अधिष्ठित हो गई।

मानव अपने दुर्गुणों को एक एक कर त्याग दे। नवरात्र की कल्पना अथवा तमाम पर्वो पर आध्यात्मिक दृष्टि से स्वयं का त्याग अपने मे सुधार लाना ही पर्व या व्रत का निजी संदेश है। यह भारतीय संस्कृति के उन मूल्यों को प्रकट करती है। जिसके लिए भारतीय संस्कृति को स्वीकार करने हेतु समस्त संसार भारत की और उन्मुख होगा। इन दिनों में पूजा को ही महत्व माना जाता है।

गुजरात की गरबा संस्कृति देश विदेशो में फैली हुई है। इन नौ दिनों में गरबा हर शहर और हर गांव में विविध वेशभूषा के साथ खेलैयाओ के द्वारा खेला जाएगा। इस आराधना में विदेशी कल्चर ज्यादा आ गया है। देर रात तक गरबा और डांडिया खेला जा रहा है। फिल्मी धुनों और गुजराती गरबा की लयमय पस्तुति देखते बनती है। इस गरबा कल्चर में पॉप संगीत की धुन से गरबा द्वारा विशेष आराधना के स्वरूप को पीछे छोड़ दिया है।

गरबा में महिलाओं और पुरुषों की टोलियों ने गरबा की रमझट को चार चांद लगा दिया है। उपासना व्रत आदि उसके अंग है।इसमें कुलाचार को अधिक महत्व दिया गया है। हरेक मनुष्य को अपने कुलाचार के अनुसार पूजा अर्चना करनी चाहिए। इसमें परम्परा के अनुसार कार्य करना चाहिए। नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अनिवार्य है।

( कांतिलाल मांडोत )

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