धर्म- समाज

गृहस्थ भी करे समतारस का आसेवन : आचार्य महाश्रमण

त्रिदिवसीय सेवा साधक श्रेणी का हुआ आध्यात्मिक शुभारम्भ

सूरत (गुजरात) : महावीर समवसरण में शुक्रवार को भी आचार्य महाश्रमण की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में एक नए प्रकल्प सेवा साधक श्रेणी का प्रथम त्रिदिवसीय शिविर का शुभारम्भ हुआ तो दूसरी ओर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का वार्षिक अधिवेशन का क्रम भी प्रारम्भ हुआ।

आचार्य महाश्रमण ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में लाभ और अलाभ की बात होती है। साधु को भी लाभ की स्थिति में ज्यादा प्रसन्नता तथा अलाभ में बहुत ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए। साधु को मद और शोक दोनों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को दोनों ही परिस्थितियों में समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे धर्मसंघ में दो बार अर्हत वंदना होती है, जिसके पाठ में लाभ और अलाभ में भी समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा, मान और अपमान इन द्वंदात्मक स्थितियों में सम रहने की प्रेरणा दी गई है। साधु को समतामूर्ति, क्षमामूर्ति, त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, यथार्थमूर्ति, महाव्रतमूर्ति होना चाहिए।

गृहस्थ को भी अपने जीवन में समतारस का आसेवन करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में व्यापार, धंधा आदि कार्य करते हैं। किसी वर्ष बहुत अच्छी इनकम हो जाए, कभी घाटा भी लग जाए, कभी सामान्य-सी स्थिति भी हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों में गृहस्थ अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में कभी प्रिय का वियोग हो जाए तो भी मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए। मन को दोनों ही स्थितियों में समता भाव में रखने का प्रयास होना चाहिए। ज्यादा राग और ज्यादा द्वेष भी विषमता की स्थिति ही होती है। आदमी को दोनों स्थितियों में सम भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए आदमी को लाभ होने पर मद न करे और शोक मिल जाने पर ज्यादा दुःखी नहीं बनने का प्रयास करना चाहिए।

आज से आचार्य की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय सेवा साधक श्रेणी के शिविर का शुभारम्भ हुआ।

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