काल का भरोसा नहीं तो आत्मकल्याण के प्रति रहें सजग : आचार्य महाश्रमण
भोग-विलास व भौतिक संसाधनों के प्रति अनासक्त रहने को आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
सूरत (गुजरात) : चतुर्मासकाल के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में पर्युषण महापर्व की उपासना भी बड़े ही आध्यात्मिक तरीके से सुसम्पन्न होती है। आध्यात्मिकता की दिशा में ले जाने इस महापर्व का शुभारम्भ एक सितम्बर से प्रारम्भ होने वाला है। इन आठ दिनों में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में हजारों-हजारों की संख्या में श्रद्धालु धर्म, ध्यान, स्वाध्याय, तपस्या, जप, नौकारसी, पोरसी आदि-आदि धार्मिक अनुष्ठानों से ओतप्रोत नजर आएंगे।
गुरुवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जो गृहस्थ है, परिग्रह से युक्त होता है, इस कारण उसमें ज्यादा आसक्ति भी हो सकती है। इस संसार में दो चीजे हैं-धु्रव और अधु्रव। आत्मा धु्रव है तो स्थूल शरीर अधु्रव होता है। भौतिक संसाधन अधु्रव होते हैं। आदमी भोग-विलास में आसक्त होता है। कहा गया है कि जो धु्रव को छोड़कर अधु्रव का परिसेवन करता है, उसके धु्रव और अधु्रव दोनों ही नष्ट हो जाते हैं।
मानव का शरीर अधु्रव है। धन-वैभव स्थाई नहीं होता। मृत्यु निकट आ रही है। जन्म के साथ में मृत्यु भी आती है। जितना समय होता है, उसके बाद मृत्यु आती है और जीव को ले जाती है। यही पूरी दुनिया की स्थिति है। शरीर अशाश्वत है, धन-सम्पत्ति भी धु्रव नहीं है तो आदमी का कर्त्तव्य है कि आदमी अपने जीवन में धर्म का संचय करे। प्रश्न हो सकता है कि आदमी धर्म का संचय कैसे कर सकता है? जैन धर्म के अनुसार बताया गया कि सामायिक करना, नौकारसी, पोरसी, जप, ध्यान, जीवन में ईमानदारी, भोजन में सात्विकता, शुद्ध दान देता है तो उसके जीवन में धर्म का संचय हो सकता है।
पर्युषण महापर्व और भगवती संवत्सरी निकट आ रहे हैं। भाद्रव कृष्णा चतुर्दशी से पर्युषण प्रारम्भ हो रहा है। यह अवसर वर्ष में एक बार आता है। इन दिनों में जितना संभव हो सके धर्म, ध्यान, साधना, प्रवचन सुनना, प्रतिक्रमण में भाग लेना संवत्सरी भगवती का उपवास, पौषध आदि का इन आठ दिनों में आदमी को अपने धर्म के खाते को भर लेने का प्रयास करना चाहिए। इस दौरान तो जितना संभव हो सके, सामायिक करें, जप करें तो प्रत्येक साल धर्म की अच्छी आराधना होती है तो धर्म का संचय हो जाता है। ‘आयारो’ आगम में भी बताया गया कि अधु्रव को छोड़कर धु्रव की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। मृत्यु का कोई भरोसा होता नहीं होता, इसलिए जितना संभव हो सके, आज से भले और अभी से धर्म के संचय और साधना के दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
मुमुक्षु बाइयां उपस्थित हैं। मुमुक्षु का जीवन भी कितना अच्छा है। सौभाग्य से ऐसा अवसर प्राप्त होता है। जीवन का क्या भरोसा, मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है, इसलिए आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए प्रयास करने का प्रयास करना चाहिए। नवयुवक ज्यादा ध्यान, जप नहीं कर सकता तो ईमानदारी रखो, जहां तक संभव हो सके नशीली पदार्थों का त्याग हो, जमीकंद का त्याग हो, गुस्से से बचने का प्रयास हो, नॉनवेज का प्रयोग न हो, तो भी धर्म का समाचरण हो सकता है। इसलिए जितना संभव हो सके, धर्म के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं ही युग के साथ न चलें, युग को भी अपने साथ चलाने का प्रयास करना चाहिए। काल का कोई भरोसा नहीं होता, इसलिए आदमी को आत्मकल्याण के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।