धर्म- समाज

भारत के गौरव वीर योद्धा महाराणा प्रताप

भारतीय इतिहास में राजपुताना का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यहा के रणबांकुरों ने देश धर्म और जातिअपने प्राणों का बलिदान देने का कभी संकोच नही किया। भारत के इतिहास में महाराणा प्रताप का नाम आदर के साथ लिया जाता है। इनके त्याग से सम्पूर्ण भारत को गर्व रहा है। मेवाड़ में अनेक शूरवीरों ने जन्म लिया है। महाराणा हमीर महाराणा कुम्भा,महाराणा सांगा महाराणा उदयसिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया। महाराणा प्रताप का जन्म दिवस भारत सहित दुनिया मे मनाया जा रहा है।

महाराणा प्रताप की वीरता,शौर्य पराक्रम और त्याग के लिए अमर है। सातवी सदी से अब तक अडिग खड़ा राजस्थान का चितौड़ गढ़ आज भी जौहर की ज्वाला सुलगती कथा को अपने मे समेटे हुए है। मेवाड़ की मिट्टी का कण कण बलिदान की याद ताजा कर रहा है।महाराणा पताप ने सालों तक अकबर से संघर्ष किया। मुग़ल बादशाह की अधीनता स्वीकार नही की गई। आज भी महाराणा प्रताप की यशोगाथा बार बार सुनने के लिए कान तरस जाते है। उस शूरवीर ने मेवाड़ को अजर अमर कर दिया।

भारत धरा अवतारों की अवतरण भूमि है। देवभूमि है।अकबर के विस्तारवाद और सैन्य प्रतिरोध और हल्दीघाटी की लड़ाई महत्वपूर्ण रही है।इस लड़ाई को इतिहास में अंकित किया है। इसवीर सपूत का इतिहास भारत मे ही नही दुनिया के अनेक देशों में पढ़ा और सुना जाता है। मेवाड़ की शौर्य गाथा में महाराणा प्रताप अहम भूमिका इतिहास के स्वर्ण पन्नो पर अंकित है।

महाराणा प्रताप का जन्म 1540 में हुआ था। उदयसिंह द्वितीय मेवाड़ वंश के बारहवें शासक थे। महाराणा ने अपनी वीरता और साहस और युद्ध कौशल के साथ देश को गौरवांवित किया। महाराणा प्रताप हजारो लोगो की जान बचाकर भी महान नही कहलाते है। क्योकि अंग्रेजो और कम्युनिष्टों ने यह इतिहास लिखा था। कम्युनिस्ट विचाररधारा के लोग और अंग्रेजी सल्तनत ने उस सच्चाई को दबा दी गई।जिसका इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में होना चाहिए था। किसी भी संयोग में राणा प्रताप वीर भूमि मेवाड़ की छाया भी शत्रुओं के हाथों सौंपना नही चाहते थे।

राजस्थान में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को एक नायक की तरह सम्मानित किया जाता है। प्रताप कूटनीतिज्ञ,राजनीतिक के अद्वितीय थे। वजनदार तलवार हर समय उनके साथ ही रहती थी।भारत के इतिहास में शूरवीर महाराणा प्रताप की गाथा अजर अमर है। वीर पुरुषों के साथ राजस्थान की क्षत्राणियो के अदम्य साहस का अपूर्व इतिहास है। शौर्य की घटनाओं में हाड़ा रानी का अपूर्व त्याग अचंभित करता है।

सरदार चूंडावत से विवाहित हाड़ा रानी ने विवाह के महज सात दिन बाद अपना शीश खुद अपने हाथों से काटकर पति को निशानी के तौर पर रणभूमि में भिजवा दिया।,ताकि उसके रूप यौवन में खोया उनका पति अपने कर्तव्यपालन में पीछे ना रह जाये। उसकी शादी को सिर्फ सात दिन ही बीता था। ना हाथों में मेहंदी छुटी और ना ही पैरों का आलता। सुबह का समय था। गहरी नींद में सोये चूंडावत को जगाने जब रानी महलसरा पहुंची। हाड़ा रानी की निशानी मिली तो वह स्तब्ध रह गए। राजस्थान की धरती बलिदान की धरती है। मिट्टी खून से रंगी हुई।आज इस नए जमाने के युवकों को गाथा सुनाई जाती है तो वे अचंभित हो जाते है।ऐसा इतिहास जहा हर पल मौत और जीवन का खेल चलता ही रहता था।

गोगुन्दा और आसपास के क्षेत्रों में मुग़लो ने कब्जा कर लिया। घमासान युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप जंगलों में चले गए। महाराणा प्रताप ने घास की रोटीखाई। अरे घास री रोटी थी, जद बन बिलावड़ो ले भागयो,राणा रो सोयो दुःख जाग्यो। बचपन से ही महाराणा प्रताप के विश्वसपात्र, सहयोगी और सलाहकार भामाशाह को भी याद किया जाता है। जैन समाज मे संग्रहण से दूर रहकर अपरिग्रह को जीवन मे धारण करने की पुरानी परंपरा है। भामाशाह का मातृभूमि के प्रति सदैव प्रेम था। आज भामाशाह को भी याद किया जाता है।जब जब वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का नाम आता है।

इतिहास गवाह है कि युद्धों में घर के भेदियो ने ही पराजय दिलाई है। नही तो उन आतताइयों की क्या मजाल थी कि इन शूरवीरों के सामने भी खड़े हो सके। महाराणा प्रताप की शूरवीरता की गाथा के साथ उनकी कद काठी के सामने कोई देख नही सकता था। राणा की सात फुट की लंबाई और 81 किलो का भाला लेकर चलने वाले वीर की शूरवीरता की गाथा अमर है। क्षत्राणियो का जौहर और शौर्य की गाथाओं से इतिहास भरा पड़ा है।

उन्माद से झूमते खिलजी ने चितौड़ दुर्ग में प्रवेश किया तो वहाँ कोई नही मिला जो उसकी अधीनता स्वीकार करता।उसके स्वागत के लिए बची थी तो सिर्फ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत विक्षित शव। इतिहास में इनकी मिसाल मिलना मुश्किल है। शूरवीर महाराणा प्रताप और त्याग और वीरता की भूमि राजस्थान को शत शत नमन।

( कांतिलाल मांडोत )

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button