पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व से जीवन में नए सुरज का उदय : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
हमारा जीवन ध्येर्य युक्त होना चाहिए
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने शनिवार 31 अगस्त को प्रवचन में कहा कि एक नई रोशनी लेकर आज हमारे जीवन में सुरज का उदय हुआ है। सुरज वहीं है लेकिन रोशनी नई है। बहती हुई हवाएं वहीं है लेकिन उनकी सुगंध अलग है। आकाश में बादल वहीं है लेकिन बादलों की चमक आज थोड़ी अलग है। आज मेरा मन खिला खिला महसूस कर रहा है। आज हल्का-हल्का सा फुला फुलासा, गहरा गहरा सा अपने अंतर में अनुभव कर रहा है तो आज विशिष्ट क्या है?
आज का दिन बहुत अलग है आज मेरे जीवन में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का आगमन हुआ है। 8 दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव आराधना, साधना का आज मेरे जीवन में उदित हुआ है। आया वह सबको धोने, साफ करने और अपना स्वरूप दिखाने आया है ऐसा पर्वाधिराज पर्युषण आज से प्रारंभ होने जा रहा है। घंटनाद हो गया है, शंखनाद हो गया है। पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आगमन का सावधान हो जाना है। पर्वाधिराज पर्युषण हमारे गृह आंगन में प्रवेश कर गया है, कुमकुम से स्वागत करो।
जीवन में दो तत्व ऐसे हैं जिनका स्वागत करना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, बहुत हितकारी हो जाता है। एक तीर्थ और दूसरा पर्व। यह हमारा मेल मिटाते हैं, हमें दिशा देते हैं, हमें रोशनी देते हैं, हमें दृष्टि देता हैं, हमें जीवन की कला सिखाते हैं, हमें सुखी करते हैं, हमें आनंद का वातावरण देते हैं यह दो तत्व ऐसे हैं। तीर्थ भी दो प्रकार के एक जंगम तीर्थ और दूसरा स्थावर तीर्थ। तीर्थ को परमात्मा स्वयं वंदना करते हैं। समस्त समाज को प्रेरणा देते है यह वंदनीय है इन्हें वंदना करो।
जंगम यानि चलता फिरता तीर्थ, जंगम तीर्थ यानी साधु साध्वी, श्रावक श्राविका। स्थावर तीर्थ यानी जहां परमात्मा के कल्याणक हुए। वह तीर्थ शत्रुंजय, गिरनार हो यह स्थावर तीर्थ है। यह दो तत्व है जो हमें पावन करते है। तीर्थ जहां जाना पड़ता है, लेकिन पर्व चलकर हमारे दरवाजे पर आता है। पर्वाधिराज पर्युषण हमारे द्वार पर आया है। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन ध्येर्य युक्त होना चाहिए। हम हमारी आत्मा, जीवन और ध्येर्य के बारे में नहीं सोचते।