राखी का पर्व सात्विक स्नेह और प्रेम का पर्व है
भारत वर्ष पर्व प्रधान देश है।इस देश में प्रतिदिन कोई न कोई पर्व आता ही है। कुछ ऐसे पर्व होते है जो धर्म और जाति से बंधे नही होते है। उनका अपना धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व होता है। ऐसे ही पर्वो में रक्षाबंधन पर्व का महत्वपूर्ण स्थान है। रक्षा का बंधन। समाज मे कुछ लोग कमजोर होते है तो कुछ बलवान भी होते है। कुछ शारीरिक दृष्टि से कमजोर है,तो कुछ आर्थिक दृष्टि से। जो व्यक्ति प्रत्येक दृष्टि से सक्षम होते है,उनका उत्तरदायित्व होता है कि वे समाज मे सामन्जस्य बनाये रखने हेतु अपने से कमजोर की हर समय सहायता प्रदान करे। रक्षाबंधन का यह त्योहार प्रतिवर्ष यही संदेश लेकर आता है।
आप यह नही मान ले कि अच्छे वस्त्र धारण कर ली ,कलाई पर सुंदर सुंदर राखियां बांध ली,नारियल फोड़ लिए,मुह मीठा कर लिया और राखी का त्योहार मना लिया। बहिन ने भाई की कलाई पर राखी बांधी,भाई ने उसके हाथ पर रुपया पैसा रख दिया और त्योहार हो गया।त्योहार मनाने का यह तो बाह्य आचरण है। त्योहार मनाने के पीछे जो भावनाएं छिपी है। उन्हीं से त्योहार का महत्व और भावनाएं प्रकट होती है। जैन और वैदिक परंपरा में रक्षाबंधन के पीछे कुछ न कुछ घटना छिपी है। जो दोनों परम्परा एक ही है,लेकिन कुछ फर्क जरूर है। जैन और वैदिक परंपरा दोनों की परंपरा एक ही है। जैन और वैदिक में वैदिक का भाग है जैन परंम्परा।
रक्षाबंधन सारे समाज का पर्व है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करे और समाज की व्यवस्था को बनाये रखने हेतु सम्पन्न वर्ग अपने से विपन्न व्यक्ति का सहयोग करे यही संदेश है रक्षाबंधन का। रक्षाबंधन पर ब्राह्मण,क्षत्रिय राजाओ के राखी बांधकर समाज की रक्षा का वचन लिया जाता था। वो परम्परा चली आ रही है। भारतीय जन मानस में रक्षाबंधन भाई और बहन के स्नेह का त्योहार है। बहन प्रतिवर्ष अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर उसके सुखी एवं सम्पन्न बनने की मंगल कामना करती है। आज इसका रूप विस्तृत हो गया है। आज राखी बांधकर कोई किसी को भी अपना भाई या बहन बना सकता है। समाज मे कितने ही स्त्री पुरुष राखी के पवित्र धागों से धर्म भाई और धर्म बहन बनकर राखी बांधकर राखी की महत्ता का निर्वहन करते है।
हुमायु का राखी प्रेम
मेवाड़ के राजा राणा सांगा प्रथम मुगल सम्राट बावर के शत्रु थे।सन 1526 में बाबर और राणा सांगा का युद्ध हुआ।बाबर की मृत्यु के बाद हुमायु गद्दी पर बैठा। लेकिन शेरशाह सूरी ने हुमायु को चैन से न बैठने दिया। हुमायु को हटाकर वह शासक बना। उधर,हुमायु शेरशाह सूरी को हराने के लिए अपना सैन्य दल लिये जंगल मे पड़ाव डाले पड़ा था। यह सूरी से भयभीत था। उसी दिनों की बात है गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। राजपूती शक्ति छिन्न भिन्न थी। राणा सांगा मर चुके थे। उनकी विधवा रानी कर्मावती ने हुमायु को राखी भेजकर बहादुरशाह से रक्षा मांगने का मन बनाया तो राजपूत सरदारों ने रानी से कहा-महारानी! हुमायु जनता है किआप उसके पिता बाबर के शत्रु की रानी है।क्या वह आपकी रक्षा करने आयेगा?
रानी कर्मावती ने बड़े आत्मसम्मान के साथ कहा-हुमायु कर्मावती की रक्षा करने कभी नही आयेगा, लेकिन एक मुसलमान भाई अपनी हिन्दू बहन की रक्षा करने अवश्य आयेगा। राखी व्रज से भी कठोर बन्धन है। हुमायु पिता की शत्रुता के बंधन को तोड़ देगा और उसे बहन के रक्षाबंधन में बांध देगा।
यही हुआ। रानी कर्मावती का दूत राखी लेकर हुमायु के खेमे में पहुंचा और राखी देने के साथ कर्मावती का संदेश दिया कि यह राखी भेजकर कर्मावती अपने भाई हुमायु द्वारा बहादुरशाह से रक्षा चाहती है। यह सुनते ही हुमायु भावुक हो उठा। उसके सरदारों से बहुत समझाया कि हम स्वयं शेरशाह सूरी के संकट से गिरे है और फिर कर्मावती आपके पिता मरहूम बाबर के शत्रु सांगा की बीवी है। हुमायु ने किसी की नही मानी और कहा। राखी का त्योहार हिन्दू मुसलमान का त्योहार नही,यह बहन की रक्षा का पवित्र बंधन है। धर्म की बहन सरोदर से बड़ी होती है। एक भाई अपने संकट को भूलकर पहले अपने बहन की हिफाजत करता है।
हुमायु ने अपनी सेना को मेवाड़ कुछ करने का हुक्म दिया। हुमायु कर्मावती के राखी प्रेम और उसकी रक्षा की यह घटना इतिहास में सुनहरे अक्षरो में लिखी है। जब हुमायु की सेना चितोड़ पँहुची तो वहाँ सबकुछ लूट चुका था। बहादुरशाह चितौड़ को लुटकर जा चुका था। राजपूत युद्ध करते हुए मारे गए। कर्मावती ने अन्य नारियों के साथ जोहर कर लिया। हुमायु ने चितौड़ आकर सारी बात सुनी तो एक बहन कर्मावती की चिता के पास पहुँच कर बहुत रोया व देर हो जाने के लिए माफी मांगी। बहन की राख को हाथ में उठाकर उसने कसम खाई कि जब तक बहादुरशाह को उसके किये की सजा नही दूंगा ,तब तक मैं चैन से नही बैठूंगा। हुमायु की सेना ने गुजरात पर आक्रमण कर अपनी बहन की राख को दिया वचन । राखी के बंधन को निभाया।बहादुरशाह की सेना हार गईं,स्वयं बहादुरशाह भी गुजरात से पलायन कर गया। भारतीय इतिहास का यह स्वर्णिम रक्षाबंधन के पर्व की महत्ता के गौरव को बढ़ाता है।
रक्षाबंधन का वर्तमान रूप
राखी धन से नापने के त्योहार नही है। धन से नापने पर त्योहार की महत्ता बढ़ती नही है,बल्कि कम होती है। घरों में हम देखते है।व्यापारी अपनी कलम एवं दवात को राखी बांधकर प्रसन्न होते है। उससे यह कामना करते है कि तुम अपने मन मे आये बुरे भावों को कभी मत लिखना। जो सही है,बही में लिखे। राखी हमे बेईमानी से बचायें, यही हमारी कामना है। आजकल स्याही उपलब्ध नही है। उनकी जगह फाउंटेन पेन आ गए है,फिर भी लोग ये परम्परा निभाते है। आज राष्ट्रपति भवन एवं प्रधानमंत्री भवन जाकर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री का रक्षा सूत्र बांधकर उनसे राष्ट्र की रक्षा हेतु उचित निर्णय लेने की दुआ करेंगे। रक्षाबंधन एक दूसरे की रक्षा की प्रेरणा देने वाला वर्व है। विश्व बंधुत्व के भाव को जगाने वाला पर्व है। भाई और बहिन के प्यार में जो सात्विकता है,वह अन्य संबंधों में कहा परिलक्षित हो पाती है? विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो की यह घटना क्या विश्व कभी भूल सकता है,जिसमे स्वामी विवेकानंद ने उस अंतराष्ट्रीय मंच पर अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा -भाइयो और बहनों कहा था। उसके पहले अमेरिकावासियो ने लेडीज एंड जेंटलमैन ही सुनते थे।
(कांतिलाल मांडोत)