जीवन में प्रेरणा देनेवाले निमित्त को अपनाएं : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
हमारी चेतना को नुकसान करनेवाले निमित्त नहीं होने चाहिए
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने शुक्रवार 23 को प्रवचन में कहा कि उत्तराध्ययन सूत्र की एक एक गाथा हमारे जीवन का कल्याण करने में सक्षम है। जिसकी आकांक्षा है, हमारे हदय में जिसे प्राप्त करने की लालसा है, जिसे प्राप्त किए बिना चैन नहीं है, वह चीज हमेशा दुर्लभ होती है। दुर्लभ ही कीमती है। जो भी सधर्मिक व्यक्ति है उसे सधर्मिक का आधार बनना चाहिए, उसका आश्वासन बनना चाहिए।
उन्होंने कहा कि क्रोध, माया, मान, लोभ के निमित्त से संस्कार भरा पड़ा है। लेकिन निमित्त को भूलकर भी कभी दोष नहीं देना चाहिए। क्रोध का कारण हमेशा दूसरा रहा है। निमित्त केवल निमित्त है, उसे स्वीकार करना नहीं करना हमारे पर निर्भर है। जो व्यक्ति निमित्त को कारण बना देता है, वह स्वीकार कर लेता है। निमित्त आपको कषाय, आराधना के भी मिलते है, जब तुम्हें मिले तो उन्हें कारण बना लो। कारण बनते ही कार्यरूप में परिवर्तित हो जाता है।
जीवन में प्रेरणा देनेवाले निमित्त भरे पड़े है, लेकिन हम निमित्त को कारण नहीं बनाते, उनको कारण बनाते है जो हमारी चेतना को नुकसान करनेवाले है। आज मेहमान श्रावक तेजराजजी गुलेचा, महावीर भंसाली, अशोकजी, संतोष लोढ़ा का संघ द्वारा सम्मान किया गया। 290 सिद्धितप की तपस्या की जा रही है।