अध्यात्म की साधना और आत्मकल्याण के लिए इन्द्रियों का संयम आवश्यक : आचार्य महाश्रमण
अध्यात्म की साधना और आत्मकल्याण के लिए इन्द्रियों का संयम करना आवश्यक
सूरत। महावीर समवसरण से महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को आयारो आगम के आधार पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शब्द, रूप, रस, गन्ध व स्पर्श ये पांच विषय हैं। इन पांच विषयों के पांच इन्द्रियां भी होती हैं। कान का विषय शब्द, आंख का विषय रूप, जिह्वा का विषय रस, नाक का विषय गन्ध व त्वचा का विषय स्पर्श होता है। इन पांच विषयों के प्रति जिसका मोह हो जाता है, वह आदमी उन विषयों के सेवन में निमग्न हो जाता है और उसमें डूब जाता है। विषयों के प्रति आसक्ति हो जाने आदमी फंस जाता है।
अध्यात्म की साधना और आत्मकल्याण के लिए इन्द्रियों का संयम करना आवश्यक होता है। संयम करने के लिए दो प्रकार-इन्द्रियों का निरोध करना अर्थात् इन्द्रियों के विषयों से दूर हो जाना। इन्द्रियां ही आदमी को बाहर के जगत से जोड़ने वाली होती हैं। जो मनुष्य इन्द्रियों का निरोध कर लेता है, मानों इसका बाह्य जगत से सम्पर्क टूट-सा जाता है। बाहर से सम्पर्क तोड़कर मनुष्य जब भीतर की ओर जाता है तो वह साधना की ऊंचाई की ओर बढ़ सकता है।
दूसरी विधि बताई गयी है कि इन्द्रिय विषयों में राग-द्वेष नहीं करना। शब्द कान में पड़े, उसके प्रति राग-द्वेष न हो। आंख से देखने के बाद भी राग-द्वेष न हो, भोजन किया, किन्तु उनके प्रति राग-द्वेष न हो। इस प्रकार पांच विषयों के प्रति राग-द्वेष न हो तो संयम की साधना हो सकती है। जितना संभव हो सके इन्द्रियों का निरोध करने का प्रयास हो, और जहां इन्द्रियों का उपयोग हो, वहां राग और द्वेष की भावना से बचने का प्रयास हो। इस प्रकार मानव इन्द्रियों के संयम की साधना कर सकता है।
विषयासक्त होकर आदमी जीवन में अनेक कष्ट झेलता है तो उससे आत्मा का भी नुकसान हो सकता है। अपनी आत्मा के कल्याण और जीवन को दुःख से मुक्त बनाने के लिए इन्द्रियों की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। साधक लोग भी अपने जीवन में राग-द्वेष से मुक्त होकर साधना करे तो वह साधना निष्पत्तिदायक हो सकती है। चतुर्मास का समय चल रहा है। कितने-कितने लोग तपस्या कर रहे हैं, कितने लोग कर लिए होंगे। तपस्या करने से रसनेन्द्रिय का निरोध हो जाता है। पारणा हो जाए तो भी रसनेन्द्रिय का संयम रखने का प्रयास होना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मुनि गजसुकुमाल के आख्यान का संगान व वाचन किया। गुरुमुख से सुन्दर आख्यान का श्रवण का लाभ प्राप्त कर श्रद्धालु भावविभोर नजर आ रहे थे। मंगल प्रवचन, सुन्दर आख्यान का श्रवण करने के उपरान्त अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान अपने महातपस्वी गुरु से कर अपने जीवन को धन्य बनाया।
तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद का 58वां वार्षिक अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। इस संदर्भ में अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा तथा अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में बेंगलुरु दक्षिण के सांसद व भाजपा युवामोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री तेजस्वी सूर्या ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि मैं परम पूज्य संत आचार्यश्री महाश्रमणजी को वंदन करता हूं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपके दर्शन करने व आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर मिला है। भारत की आत्मा आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई हैं और इसमें साधु-संतों के आशीर्वाद और गुरु परंपरा का बड़ा महत्त्व है। भारत को हमेशा भारत बनाए रखने की जिम्मेदारी युवाओं की है। मैं पुनः आपके चरणों में प्रणाम अर्पित करता हूं।