धर्म- समाज
भारतीय संस्कृति संयम प्रधान संस्कृति
कांतिलाल मांडोत
आज विश्व सभ्यता के सर्वोच्च शिखर की और उठ रहा है।हर और प्रकृति का शंखनाद सुनाई दे रहा है।ज्ञान के उपर विश्वास हावी होता जा रहा है।सभ्यता के उपर हमारी मानवीय संस्कृति लड़खड़ा रही है।क्यो?यह जानने के लिए हमे अतीत की और लौटना पड़ेगा और पलटने होंगे इतिहास के पन्ने ।कई सज्जन सभ्यता और संस्कृति को एक ही समझते है,मगर नही,दोनों में जमीन आसमान का अंतर है।हमे बाहरी समृद्धि दिखाई दे रही है।वह है सभ्यता।मगर संस्कृति तो आंतरिक विकास है जो अचानक समाप्त नही हो सकता।भवन नष्ट हो सकते है,पुल ढह सकते है,मगर संस्कृति में सहज समाप्त नही किया जा सकता।हमारे विचार,रीति-रिवाज, खान पीने के ढंग ,सहिष्णुता के भाव ,बडो के प्रति सम्मान, छोटो के प्रति स्नेह,समाज के प्रति त्याग और उदारता, भाषा एवं उत्सव संस्कृति ये सभी संस्कृति की एक झलक है।विश्व मे कई सभ्यताएं पनपी।उनके साथ उनकी अपनी संस्कृति थी।मिस्र ,रोम,चीन,हड़प्पा और मोअन जो दड़ो की अपनी सभ्यता और अपनी संस्कृति है।दुनिया की अन्य प्राचीन भ्यताएं जो अधिकतर नदियों के किनारे पनपी,वे काल के गर्त में समा गई।प्राकृतिक प्रकोप ,युद्ध,आपसी संघर्ष में सभ्यताए समाप्त हो गई,मगर भारतीय संस्कृति की जो धारा सिंध एवं गंगा के तटों पर पनपी,वह आज भी अपना परचम लहरा रही है।इसका मूल कारण है हमारी संस्कृति, मानवता, त्याग,सहिष्णुता और धर्म के अमृत से सिंचित रही है।उसने सभ्यता की धूप से कभी झुलसने नही दिया।चीन, मिस्र, यूनान और भारत विश्व की इन चारों प्राचीन संस्कृतियों में भारत की संस्कृति ही मानो अमरता का वरदान पाये हुए आज भी जीवित है।
जिसकी लाठी उसी की भैंस किसी को गुलाम बनाना है तो समाज या राष्ट्र की संस्कृति को नष्ट कर दो।बस उस राष्ट्र के निवासी सदा सदा के लिए गुलाम बन जाएंगे।यही तो हुआ हमारे देश मे।एक हजार वर्षो तक विदेशी आतताइयों के बर्बर हमले किये और तलवार के बल पर अपनी हुकूमत कायम करके उन्होंने भारत की संस्कृति को पंगु बनाने का भरसक प्रयास किया।आश्रमो को जलाया,मंदिरों को गिराया, अपनी भाषा और विचार हम पर लादने की भरपूर कोशिश की,धर्म परिवर्तन करने को बाध्य किया,मगर क्या हुआ?मुग़ल आये और वे भी इसी धरा में समा गये।वे अपनी संस्कृति का अधिक प्रसार प्रचार नही कर पाये।बल्कि स्वयं इसी संस्कृति के उपासक बन कर रह गये।उनकी फ़ारसी भाषा यहाँ आकर उर्दू में रूपांतरित हो गई।लिपि बदल गई, मगर शब्दो का उच्चारण यहाँ का होकर रह गया।उर्दू की लिपि बदल गई,मगर क्रिया,विभक्ति सर्वनाम और अवयव उसने हिंदी के ही लिए।इसलिए उर्दू भी हिंदी ही का एक रूप बनकर रह गया।
सबसे बड़ा हमला भारत की संस्कृति पर सबसे बड़ा हमला अंग्रेजों ने किया।श्चिम की भौतिक चकाचौंध के कृत्रिम प्रकाश में हम अंधे हो गये।अंग्रेज दौ सौ वर्षों तक धीरे धीरे हमारी संस्कृति को धुन की तरह खाते हुए उसे खोखला करते रहै।उसी का प्रभाव है कि महानगरों की संस्कृति हमे भारतीय कम विदेशी अधिक लगती जा रही है।वह पश्चिमी हवा क्या हमारे सारे पुराने मानदंडो को नष्ट कर देगी? सोचिए, क्या वृद्ध माता पिता की सेवा हमारा धर्म नही है?जिन बच्चों मो माँ ने जन्म दिया,उनका पालन पोषण कर योग्य बनाया,उस माँ की सेवा करना क्या पुत्रो का धर्म नही रहा? संयमी संस्कृति
हिंदुस्तान को सदैव अच्छा बनाये रखने का कर्तव्य देशवासियों का है।भारतीय संस्कृति संयम प्रधान संस्कृति है।यहां के राजा महाराजा, सन्त ऋषि सभी तो संयम का संदेश देते है।जो संयम से युक्त है दुनिया के सभी शक्तिया उसकी मूठी में है।
संयमशील साधक के चरणों मे दुनिया सिर झुकाती है।विश्व विजय करने का स्वप्न लिए सिकन्दर जब सिंधु तक आया तो उसने साधक दाण्डायायन के बारे में सुना और अपने सेवको को आदेश दिया कि उस साधक को हमारे पास आने का संदेश दो।क्या दाण्डायायन सिकन्दर के पास गया?नही,नही गया।मजबूर होकर सिकन्दर को ही उसके आश्रम में जाकर सिर झुकाना पड़ा, यह है संयम साधक की शक्ति।जो लोग हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने की बात करते है।उन्हें अतीत में जाकर देखना चाहिए।अनेक उपद्रव के बाद भी हमारी भारतीय संस्कृति आदिकाल से एक जैसी है।जो लोग हिंदुओ पर जुल्म कर हिंदुओ को भयग्रस्त करके अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते है।उनको पता होना चाहिए कि हिंदुस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक नही पर बहुसंख्यक है।भारत सभी का है।सभी धर्मों को समानता की दृष्टि से देखा जाता है।बार बार हिंदुओ पर अत्याचार और हिंसक हमले निंदनीय है।
ReplyForward
|