धर्म- समाज

नूतन वर्ष,नवीन संवत्सर सुंदर भविष्य की दे रहा है प्रेरणा

आज चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के प्रभात में नया विक्रमी संवत्सर आशा और उमंग का प्रकाश लेकर हमारे दरवाजे पर उपस्थित हुआ है। आज का प्रातःकाल विगत का प्रत्यालोचन और भविष्य का पर्यालोचन करने का सन्धिकाल है। अतीत और अनागत हमारे सामने खड़े है।

अतीत विदा हुआ यह कह रहा है-मैं जा रहा हूं।इस संसार की यही रीत है। जो आता है वह जाता है,जो हंसता हुआ बहुत स्वागत और तरंगों के साथ आया था,जिसके स्वागत में मिठाइयां बांटी थी,फूलो की वन्दनवार टांगी थी,नया साल मुबारक कहा था।वह आज आँसू बहता हुआ जा रहा है।

एक वर्ष की कड़वी यादे, कटु अनुभव और दुःख की दुर्गंध हमारी गोद मे डालकर अलविदा कह रहा है। मेरे साथियों एक दिन आपको हमको जाना है और जाते समय हम भी आंसू बहाएंगे। हमारा समय यू ही निकल गया। हाथ मलते रह गए। दुनिया वाले हमको अलविदा जयरामजी की,गुडबाय कह लेंगे। डाली से गिरते हुए विदा होते फूल कह उठा-हमारी तो कट गई, हम जा रहे है। अब तुम अपना ख्याल करो।एक तरफ हमारे सामने नया संवत्सर मुस्कराते मित्र की तरह खड़ा अभिवादन कर रहा है, वह कह रहा है -मेरे मित्र!जो गया उसको भूल जाओ, उस पर पछताओ मत,घबराओ मत,जाने वाले को जाने दो।

मैं एक वफादार मित्र की तरह,एक आज्ञाकारी सेवक की तरह तुम्हारे सामने खड़ा हूँ। तो यह नया संवत्सर हमारे द्वार पर खड़ा आपको आशा और उमंगों का सब्जबाग दिखा रहा है। हम विगत को भूल कर भविष्य को बनाने के लिए कमर कसनी पड़ेगी।यह संवत्सर की संधि का समय है।परिवर्तन का समय है।

बीति ताहि विसार दे,आगे की सुधि लेह

चैत्र शुक्ला प्रतिपदा का दिन विक्रमी संवत्सर का नया वर्ष,नये वर्ष का प्रथम दिन है।ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना प्रारंभ की थी।हिन्दू पुराण,जो सृष्टि रचना में विश्वास रखते है उनकी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के सूर्योदय के समय जगत की रचना प्रारम्भ की थी।अवतारवादी कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का आविर्भाव भी आज के दिन हुआ था और सतयुग का प्रारम्भ भी आज ही के दिन हुआ था,इसलिए आज चैत्र शुक्ला प्रतिपदा नये युग का,नये संवत्सर का प्रथम दिन माना जाता है।

नया सवंत्सर हमे अतीत को भूलने की प्रेरणा देता है।जो चला गया उसका शोक मत करो। जो खो दिया सो खो दिया।यदि तुमने पिछले वर्ष को सार्थक कर लिया तो वह आपका हो गया।यदि सार्थक नही किया तो वह हाथ से निकल गया,किंतु अब जो सामने आ रहा है उसे सफल बनाने के लिए तैयार हो जाना है।जो बाते बीत जाती है,वह लौटकर नही आती ।समय की सुई जो घूम जाती है,वह वापस मुड़कर नही जाती।नया संवत्सर हमारे सामने खड़ा है।जीवन के दरवाजे पर दस्तक देकर हमको पुकार रहा है।यदि पिछला वर्ष खो दिया तो अब उदास मत बैठो।हताश मत हो।नया वर्ष हमारे सामने खड़ा है।नया संकल्प,नया उत्साह भरकर आने वाले कल को झोली में संभालकर रखना है।

मनुष्य नवीनता प्रेमी है।सुबह उठते ही नया सूरज देखकर आनन्दित होता है।नये खिले फूल और नयी ताजी हवा से मन प्रफुल्लित हो उठता है।आज नया वर्ष प्रारंभ हो रहा है।बेकार हुए कैलेंडर हट गये है।नये कैलेंडर आ गए है।
उनमे हमारा कल झांक रहा है।नये वर्ष की बधाइयां दे रहे है।नूतन वर्ष अभिनंदन के शानदार कार्ड और बहुमुल्य तोहफा का आदान प्रदान हो रहा है।मोबाइल पर शुभकामनाएं संदेश भेज रहे है।

आज जो शुभकामनाएं दी जा रही है वह मामूली चीज नही है।वह हमारे भविष्य का निर्माण करने में नींव का काम कर सकती है।सज्जनों की शुभकामनाएं किसी ऋषि के वरदान से कम नही होती।शुभ कामनाएं शुभ वायुमंडल का निर्माण करती है,शुभ प्रेरणाएं जगाती है और नई ऊर्जा प्रदान करती है।ये शुभकामनाएं हमको सावधान करती है कि आपका आने वाला कल मंगलमय हो,इसलिए आप ही तत्पर होकर अपने भविष्य का चिंतन करे और नये कार्यक्रम, नई योजनाएं ऐसी बनाए जो हम और आपके जीवन के न केवल भौतिक विकास में,अपितु आध्यात्मिक विकास में,आत्म अभ्युदय में भी सहायक बने।

स्तम्भ बनकर हमारे जीवन महल को सहारा देवे और परिवार,समाज,राष्ट्र एवं समस्त विश्व के कल्याण में योगदान दे सके।संसार मे यह करना है जिसे लाखो करोड़ों का भला हो सके।आज हमें नववर्ष का स्वागत करना है और स्वयं ज्योतिर्मय बने।जलता हुआ दीप दुसरे दीपो को जला सकता है।बुझा हुआ दीप अंधेरे में ही पड़ा रहता है।इसलिए प्रज्वलित दीपक बनना है।संसार मे ज्योति बनकर जीना है।जो दूसरों को प्रकाश दे।चिंगारी बनकर जिओ,ताकि अंधेरे को रोशनी में बदल सको।कोयला बनकर मत जिओ,जो पड़ा पड़ा सुलगता रहे,धुंआ उगलता रहे।

जिंदगी बहुत मूल्यवान है।इसका एक एक पल इतना महत्वपूर्ण है कि हम इन पलो में शताब्दियों का इतिहास रच सकते है।युग की धारा बदल सकते है।इस प्रवाह की भी मोड़ सकते है।बस,आवश्यकता है उत्साह की,उल्लास की और जीवन मे कुछ न कुछ नव निर्माण करने के शुभ संकल्प की।जिंदगी का अर्थ उत्साह और साहस है।

नव वर्ष के नव सूर्योदय की साक्षी में हमको अपने कर्तव्य का स्मरण कर संकल्प लेना है।जीवन का उद्देश्य निश्चित कर उस दिशा में कदम बढ़ाना है।संघर्ष भी आएँगे, संकट भी आएँगे।असफलए भी मिलेगी।लोगो की आलोचना व चर्चाएं भी होगी परन्तु लक्ष्य की तरफ बढ़ने वाले इन सब की उपेक्षा करके इन संघर्षो से टक्कर लेकर बढ़ते ही जाते है।हमें तूफान से टक्कर लेकर कर्तव्य की नाव को किनारे तक पहुंचाना है।जीवन मे आशावादी बनकर,मानवतावादी बनकर जिये।देश के उज्जवल भविष्य के प्रति आशा और आस्था जगाए, संकल्प और पुरुषार्थ जगाए।केवल अपने लिए नही जिये।अपने लिए तो पशु भी जीता है।किंतु दुसरो के लिए भी जिये।अपने स्वार्थ को परमार्थ में बदले।राष्ट्र सुखी होगा तो मनुष्य भी सुखी रहेगा।

( कांतिलाल मांडोत )

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