धर्म- समाज

कामनाओं के दमन का प्रयास करे मानव : आचार्य महाश्रमण

मानव के कल्याण के लिए अपनी विशाल पदयात्रा अद्वितीय : केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री

सूरत। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान आचार्य महाश्रमण की मंगल सन्निधि में रविवार को केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री तथा भाजपा के गुजरात राज्य प्रदेशाध्यक्ष सी.आर. पाटिल उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्य को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यकी मंगलवाणी श्रवण भी करने के साथ ही अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्ति दी। आचार्य ने उन्हें पावन पाथेय भी प्रदान किया।

आचार्य महाश्रमण ने रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि काम का अतिक्रमण करना मुश्किल होता है। काम शब्द का प्रयोग अनेक प्रकार के कार्यों के संदर्भ में होता है तो काम एक अर्थ कामना के संदर्भ में भी होता है। इन्द्रिय विषय के संदर्भ में भी काम शब्द का प्रयोग होता है। यहां कामना के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। कामना होती है तो आदमी पदार्थों का संग्रह करता है, पदार्थों का परिग्रह रखता है।

इच्छा काम के अंतर्गत सोना, चांदी आदि पदार्थों को प्राप्त करना, धन, मकान, पदवी आदि आते हैं। दूसरा बताया गया मदन काम। शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि की कामना मदन काम है। काम अनंतकाल से प्राणी के भीतर रहती है। इसलिए इस काम का पार पाना मुश्किल भी होता है। इच्छाओं को कम करना, लोभ का क्षय तथा संतोष को धारण करना बड़ा कठिन काम होता है।

लोभ को पाप का बाप कहा जाता है। कितने-कितने पापों के जड़ में लोभ ही होता है। लोभ के कारण हिंसा में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी झूठ बोल सकता है, छल-कपट कर सकता है। यहां तक कि लोभ के कारण आदमी किसी की हिंसा भी कर सकता है। इस कारण काम दुःख का भी बहुत बड़ा कारण है। कामनुवृद्धि के कारण शरीर और मन दोनों को दुःखी बनाने वाला हो सकता है। जो प्राणी वीतराग बन जाता है, वह दुःख का पार पा सकता है। काम अध्यात्म की साधना में परित्याज्य होता है। साधना की गहराई में जाने से कामनाओं का पार भी पा सकता है। आदमी को अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। भौतिक इच्छाओं की सीमा रखनी चाहिए। स्वदार, भोजन व धन में संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए तथा अध्ययन, जप और दान में संतोष नहीं करना चाहिए।

आज आचार्य की मंगल सन्निधि में केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री व गुजरात भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सी.आर. पाटिल पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर आशीष प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि हमारे आंगन में पूज्य संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन चतुर्मास हो रहा है, यह हम सभी के लिए परम सौभाग्य की बात है। आपके आगमन से यहां की जनता आह्लादित है। मैंने आपकी कीर्ति और ख्याति तो बहुत सुन रखी थी आज दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ है। आपकी विकट पदयात्रा और जनकल्याण का जो कार्य किया है, वह अद्वितीय है। आपने अभी दान में संतोष नहीं करने की जो प्रेरणा दी है, वह भी समाज के लिए कल्याणकारी है। आप तो लोगों को नीति पर चलने का राह भी दिखाते हैं।

राजनीति में तो लोगों को सेवा की भावना से आना चाहिए। मेरा मानना है कि जो आदमी धर्म को नहीं मानता, वह अनीति का कार्य करने में डरेगा नहीं, और धर्म में आस्था रखने वाला होगा तो वह नीति पर चलेगा, जिससे देश और समाज का भला हो सकेगा। आपने नशामुक्ति के जन-जन को उत्प्रेरित किया है। ऐसे महात्मा जो समाज के हित के विषय में सोचते हैं। मैं ऐसे आचार्यश्री को बारम्बार प्रणाम करता हूं।

आचार्यश्री ने उन्हें आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज जलशक्ति मंत्रीजी का आना हुआ है। जल की बात है तो जल को रत्न की संज्ञा प्रदान की गयी है। धरती पर तीन रत्न है- जल, अन्न और सुभाषित। जैनिज्म में यहां तक कहा गया है कि जल भी सजीव है, इसलिए जल का फालतू व्यय नहीं करना चाहिए, ऐसा अहिंसा की दृष्टि से भी होता है। हम तो सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा देते हैं। आचार्यश्री तुलसी ने अणुवत के छोटे-छोटे नियमों से लोगों को सत्पथ की प्रेरणा दी। राजनीति में खूब अच्छी नैतिकता बनी रहे।

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