धर्म- समाज

काम और अर्थ पर धर्म और मोक्ष का रहे अंकुश : आचार्य महाश्रमण

देश के विभिन्न हिस्सों से संघबद्ध पहुंचने वाले श्रद्धालु प्राप्त कर रहे आध्यात्मिक लाभ

सूरत (गुजरात) : ताप्ती नदी के तट पर बसा सूरत शहर भारत के पश्चिम भाग में होने के कारण अरब सागर से भी अति निकट है। इस कारण यहां के वातावरण में भी समुद्रता की निकटता वाली स्थिति सहज ही देखने को मिलती है। बरसात न हो तो उमस भरी गर्मी लोगों को बेहाल करती है और बरसात हो जाए तो वह सामान्यतया लोगों को परेशान करती है। गत दो-तीन दिनों से बरसात का दौर जारी है। कभी तीव्र तो कभी मंद और कभी पूरी तरह बंद होने वाली बरसात लोगों को उमस वाली गर्मी से राहत प्रदान कर रही है। शुक्रवार को भी प्रायः पूरे दिन आसमान में बादल छाए रहे और यदा-कदा वर्षा का क्रम जारी रहा, किन्तु जन-जन का कल्याण करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल प्रवचन ही नहीं, श्रद्धालुओं व बाहर से आने वाले संघबद्ध लोगों को दर्शन, सेवा, उपासना पर मंगल आशीष देने का क्रम यथावत रहा।

मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि गृहस्थ के जीवन काम और अर्थ दो तत्त्व होते हैं। धर्म और मोक्ष तत्त्व भी प्राप्त हो सकते हैं। काम और अर्थ रूपी मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी पर धर्म और मोक्ष का अंकुश रहता है तो मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी अच्छे ढंग से चल सकती है। अगर निरंकुश हो जाए, इस पर किसी प्रकार का नियंत्रण न हो तो मानव दुःखों के गर्त जाकर गिर सकता है।

काम मानव जीवन का साध्य बन जाता है और उसका साधन बनता है अर्थ। ये दोनों आदमी के जीवन की सांसारिक बातें हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन में आदमी अर्थ का अर्जन करता है और उसका उपयोग भी करता है। कोई भोग में उपयोग करता है तो कोई दान में भी उपयोग करता है। संस्कृत साहित्य में धन की तीन गतियां बताई गई हैं- दान, भोग और नाश। जो आदमी धन का न तो दान देता है और न ही भोग करता है तो उस अर्थ का नाश भी हो सकता है। मानव दान कहां देता है, यह विवेक की बात होती है। कोई सामाजिक कार्य में यथा विद्यालयों में, चिकित्सालयों में, गरीबों को, गौशाला, प्याऊ, रुग्णोें आदि की सेवा आदि में दान देना लौकिक दान है और सामाजिक क्षेत्र का दान होता है। इसमें आदमी की दयालुता प्रकाशित होती है। कहीं कोई आपराधिक गतिविधियों को चलाने में अर्थ को देता है। कोई-कोई आदमी धर्म आदि के कार्यों में दान करता है। धार्मिक गतिविधियों में दान देना बहुत अच्छी बात होती है। धार्मिक साहित्य के प्रकाशन आदि में भी दान दिया जाता है। आदमी खुद के जीवन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए अर्थ का खर्च करता है, वह उसका भोग करता है। जो आदमी न दान करता है न ही भोग करता है, उसके अर्थ अर्थात् धन का कभी नाश भी हो सकता है।

जो आदमी स्वयं को अमर के समान मानकर काम और अर्थ में आसक्ति करता है, उसके जीवन की दुपहिया गर्त की ओर जा सकती है। इसलिए अर्थ और काम पर धर्म व मोक्ष का अंकुश रखने का प्रयास करे, ताकि जीवन सुगति को प्राप्त हो सके।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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