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सच्चे दिल से की गई प्रार्थना और विश्वास असंभव को भी संभव कर देती है : संत सुधांशु महाराज

आध्यात्मिक यात्रा के लिए प्रभु के प्रति गहरी प्यास जगाएं : डॉ. अर्चिका दीदी

सूरत। बालाश्रम सूरत मण्डल द्वारा संकल्पित चार दिवसीय विराट भक्ति सत्संग महोत्सव में सूरत महानगर पालिका के चीफ इंजीनियर आशीष दुबे, समाजसेवी राजेन्द्र उपाध्याय, महेश मालानी, पार्षद रश्मि साबू, पार्षद नरेन्द्र पाटिल, सुरजीत मास्टर, श्रीमती आशा शर्मा, श्रीमती अलका पाठक, श्रीमती मधु अग्रवाल ने मिशन प्रमुख पूज्य गुरुदेव सुधांशु जी महाराज एवं ध्यान गुरु डॉ. अर्चिका दीदी जी का माल्यार्पण कर स्वागत किया। इस अवसर पर श्री नारायण दास कामरा के द्वारा व्यासपीठ पर व्यास पूजन किया गया।

विश्व जागृति मिशन के प्रणेता सदगुरुदेव पूज्य सुधांशु जी महाराज ने शनिवार को यज्ञ के ज्ञान विज्ञान के बारे में बताते हुए कहा कि जिसकी आसक्ति सर्वथा नष्ट हो गई है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरंतर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है, ऐसा केवल यज्ञ संपादन के लिए कर्म करने वाले मनुष्य के संपूर्ण कर्म भली-भांति विलीन हो जाते हैं। कितने सारे लोग द्रव्य संबंधी यज्ञ, तपस्या रूप यज्ञ, योग रूप यज्ञ, स्वाध्याय रुप यज्ञ करने वाले हैं। यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगीजन सनातन परब्रह्मा परमात्मा को प्राप्त होते हैं और यज्ञ न करने वाले मनुष्य के लिए यह मनुष्यलोक भी सुखदायक नहीं है।

महाराजजी ने कहा कि हर व्यक्ति में आसुरी एवं दैवी प्रवृत्ति होती है। इसलिए बचपन से ही बच्चों में दैवी की यानी धार्मिकता की आदत डालनी चाहिए। जीवन में धर्म आ गया तो समझो कि भगवान की कृपा हो रही है। सच्चे दिल से की गई प्रार्थनाएं और भगवान के प्रति विश्वास असंभव को भी संभव में बदल देने की ताकत रखती है। महाराज जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को माध्यम बनाकर हम सभी मानव को उपदेश, संदेश और आदेश भी दिया है। श्री कृष्ण कहते हैं स्वयं को नीचा मत दिखाओ यानी स्वयं को नीचे मत गिरने देना। स्वयं को अपना मित्र बनाओ शत्रु नहीं। कौन सी आदतें तुम्हारा मित्र हैं और कौनसी आदतें तुम्हारा शत्रु है इसकी पहचान स्वयं करो। गीता तब भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी।

ध्यान एवं योग गुरु डॉ. अर्चिका दीदी ने शनिवार को सूरत मण्डल द्वारा आयोजित सत्संग कार्यक्रम में उपस्थित होकर जन समुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिसका जीवन साधना एवं भक्ति से युक्त है वह परमात्मा का महसूस करता है, वह समस्त चिंता, भय, निराशा से ऊपर उठ जाता है। हर व्यक्ति की चाह सुख, शान्ति है लेकिन वह आनन्द स्रोत परमात्मा को पाने की चेष्टा नहीं करता। जिस चीज की गहरी प्यास हमारे अन्दर है उसी के आसपास हमारा मन चक्कर लगाता है। सांसारिक साधनों की चाह वाले लोग संसार में ही प्राण बसाकर जीते हैं लेकिन जिनके अन्दर परमात्मा की प्यास है वह जीवन में सर्वाधिक महत्व परमात्मा को देता है।

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